दीदी ने मेरे सामने अपने बॉयफ्रेंड से चुदवाया

 
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मेरा नाम कैलाश है। मैं अपनी बहन संगीता के साथ एक किराये के घर में रहता था। हम दोनों कॉलेज में पढ़ते थे। हमारे बहुत से दोस्त हो गये थे, अधिकतर दोस्त तो संगीता के कारण थे। वह बहुत ही मस्त लड़की थी, लड़कों और लड़कियों से एक सी दोस्ती रखती थी। खास कर वो लड़कों से सेक्स की बातें अधिक करती थी।

हम दोनों भी अक्सर घर में संगीता के दोस्तों की बातें करते थे। बातें करते समय मुझ में उत्तेजना भर जाती थी। कभी कभी वो लड़कों के बारे ऐसा कुछ कह जाती थी कि मेरा लण्ड खड़ा हो जाता था। यह उसे भी पता था कि सेक्स की बातों से मेरा लण्ड खड़ा हो जाता है, तब वो मेरा भी मजा देखा करती थी।

उसका ज्यादा झुकाव प्रकाश की तरफ़ था। प्रकाश की नजरें भी उस पर थी। संगीता इस बात को जानती थी। वह नजरें पहचानती थी पर ऐसा भी नहीं था कि मेरी बहन मेरी गंदी नजरों को नहीं पहचानती थी। वो मेरी हर हरकत को देखती थी और मुसकराती थी। पर मैं ही इस मामले पीछे था, बस उसके नाम का मुठ मार लेता था और अपना वीर्य टपका देता था।

सवेरे सवेरे यह बहुत होता था कि मेरी नींद मेरे खड़े लण्ड की वजह से खुल जाती थी और मैं उल्टे लेट कर लण्ड पर चूतड़ों का जोर लगा कर बिस्तर से दबा दबा कर माल निकाल देता था। एक बार दीदी ने मुझे ऐसा करते हुये पकड़ भी लिया था।

वो सो कर उठी ही थी और मैं अपना चेहरा दूसरी ओर किये हुये लण्ड को चूतड़ों से दबा रहा था। बड़ी मीठी मीठी सी गुदगुदी भरा अहसास हो रहा था। मेरा लण्ड मेरी जांघ के जोइन्ट पर बिस्तर पर दबा पड़ा था और दबाने पर एक साईड से बाहर आता था और एक मिठास भर देता था। दीदी मेरे पास खड़ी यह सब देख रही थी।

मेरे चूतड़ों का दबना उसे बहुत भा रहा था शायद। उसने मेरे चूतड़ों पर हाथ फ़ेरा, पर मैं उस समय चरम सीमा पर था, झड़ने ही वाला था, उसका हाथ मुझे बहुत ही सुहाना लग रहा था। मेरे चूतड़ के उभरे हुये गोल गोल भाग को वो सहला रही थी। तभी मेरा वीर्य छूट पड़ा। मैं चूतड़ो से लण्ड को दबा दबा कर वीर्य निकालता रहा। तभी मैंने संगीता के होने के अहसास का नाटक किया।

‘अरे दीदी आप… !’
‘बहुत मजा आ रहा था क्या…’
‘आ…आप क्या कह रही हैं…?’

‘ये पजामे पर इतना सारा माल… सारा पाजामा गीला कर दिया है…तुम बहुत गन्दे हो भैया !’

‘सॉरी दीदी… ‘ मैं शरमा गया और जल्दी से बाथ रूम में भागा। संगीता खिलखिला कर हंस पड़ी। शायद मेरे चूतड़ को छूने का अहसास उसे हो रहा होगा… क्योंकि मुझे भी उसके हाथों का स्पर्श जिस्म में अभी भी सनसनी पैदा कर रहा था। शरम के मारे ना तो मैंने कुछ कहा और ना ही संगीता ने कुछ कहा। पर हम दोनों के मन में एक दूसरे लिये एक कसक सी मन में रह गई।

एक दिन प्रकाश ने मुझसे संगीता के बारे में कह ही दिया,’यार कैलाश… संगीता से मेरी दोस्ती करा दे ना…!’
‘क्यों… ऐसा क्या है? वैसे भी तुम उसके दोस्त तो हो ना…!’
‘नहीं यार… वैसी दोस्ती नहीं… तुम्हारी अनुमति से मैं उसे चोदना चाहता हूँ, वो भी ऐसा चाहती है !’

‘जब मियां-बीवी राजी तो क्या करेगा भैया जी !’ मैंने उसे कहा कि अब वो मेरे घर आना जाना शुरू कर दे… रोज मिलोगे तो जरूर बात बन जायेगी।

मेरी बात मान कर उसने अब मेरे घर पर आना जाना आरम्भ कर दिया। पहले तो मैंने उनकी दोस्ती और गहरी कर दी। जब दोनों आंखों ही आंखों में इशारा करने लगे तब मैंने उन्हें अकेला छोड़ दिया। प्रकाश के आने का समय होता तो मैं उस समय बाहर चला जाता था।
आगे क्या हुआ… अब सुनिये मुझे जैसा प्रकाश ने बताया। दोस्तों आप ये कहानी गुरुमस्ताराम डॉट कॉम पर पढ़ रहे है ।

आज प्रकाश अपने साथ व्हिस्की की एक बोतल लाया था। उस समय क्रिकेट के किसी मैच का री-प्ले आ रहा था। प्रकाश और संगीता दोनों ही उस मैच का मज़ा ले रहे थे। पर संगीता की निगाहें तो प्रकाश पर ही जमी थी। यह प्रकाश को भी पता था। वो उसके समीप ही बैठी थी। तभी धोनी का छक्का पड़ा… प्रकाश खुशी के मारे संगीता से लिपट गया। संगीता भी उसकी बाहों में सिमटती चली गई। अब प्रकाश ने कोई विरोध नहीं देख कर उसे चूम लिया। संगीता बस प्रकाश की तरफ़ टकटकी लगाये देखती रही।

‘ओह माफ़ करना… बुरा मत मानना…’ प्रकाश ने यूं ही झेंपने का नाटक किया।
संगीता खिलखिला कर हंस पड़ी,’बड़ी मस्ती आ रही है…?’
‘ये दारू का कसूर है… मेरा नहीं !’
‘अच्छा तो मुझे भी इसका अनुभव कराओ… देखें तो दारू पीने से कितनी मस्ती आती है !’

उसने संगीता को एक पेग बना कर दिया। जिसे वो धीरे धीरे पूरा पी गई। फिर उसने दूसरा पेग भी धीरे धीरे करके पूरा पी लिया। इतनी देर में संगीता को अच्छा नशा चढ़ गया था।



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