अंशिका की मस्त चुदाई
हेलो दोस्तों, मेरा नाम दीपक है. मेरी उम्र २८ साल है, मैं गुडगांव में इंजीनियर हूं. मेरी लाइफ में लड़कियां आती रहती है, और खुदा कसम आज तक हर लड़की को मैंने पूरा सेटीसफाय कर के ही भेजा हे.
पर यह चुदाई का चस्का ऐसा लगा है की मुझे आज रोज नयी चूत चाहिए, जवान नरम, जिस्माना गोश्त और उसकी महक मुझे पागल बना देती है.
पर एक टाइम था, मैं एक सीधा साधा लड़का था, लड़कियों से सिर्फ दोस्ती करता था और उनके जिस्मों से खेलना तो मैंने सोचा भी नहीं था, बस एक बार क्या गलती हुई आदत ही पड़ गई, वह वाकया में आपको सुनाता हूं.
मोदीनगर में मेरी ममेरी बहन अंशिका रहती है. मेरे से ३ साल छोटी है. आजकल तो मोटी हो गई है पर आज से ९ साल पहले पतली लंबी हुआ करती थी.
वह तब १८ साल की थी जब मैं गर्मियों की छुट्टियों में मोदीनगर आया था, बस स्टैंड से उतर के मैंने उसके घर समीर विहार पहुंचा. मुझे देखते ही उसने मुझे गले लगा लिया, गोरी और पतली तो थी, फिगर भी बहुत स्लिम था.
जब वह उछल कर मेरे पे लिपटी तो मेरा एकदम सर घूम गया और मेरा मुसल तड़क से खड़ा हो गया था. उसको जब चुभा शरमा के पीछे हट गई, उस के बाद डिनर टेबल तक उसने मेरे से आंखें मिलाई नहीं और वह मेरे पास भी आई नही.
डिनर के बाद हम वोक पर निकल गए, चारों तरफ हरियाली और पेड़ थे, खूबसूरत हवा चल रही थी, उसने टाइट नीली ड्रेस पहन रखी थी, वह बहुत प्यारी लग रही थी. वह बार बार नजर उठा कर मुझे देख रही थी, अब तो मुझसे नहीं रहा गया, अचानक मैंने उसे बाहों में जा कर लिया, वह कसमसाई लेकिन कुछ बोली नहीं.
मैंने उसके बाद उसे चूमना शुरू किया और चूमते चूमते उसके गोरे चिकने गले पर आ गया, मेरे हाथ पहले उसकी पीठ पर ब्रा के हुक को बदलते टटोलते उसकी गांड पर पहुंच गए. भाई क्या बताऊं क्या पतली कमर थी क्या टाइट चुतड थे. पहले सहलाता रहा और फिर दबाने लगा, वह कसमसा रही थी पर मजा भी ले रही थी.
मेरा लंड खड़ा हो गया था और फटने को तैयार था, कच्चा भी गीला होने लगा था साला अंशिका की टांगों के बीच में बार बार टकराने लगा था. मेरे पूरे बदन में आग लगी हुई थी. और ना कुछ सुनाई दे रहा था और ना कुछ दिखाई दे रहा था.
फिर मैंने धीरे से उसके चेहरे को ऊपर किया और उसके गालो को चुमा. वह बस अपने में सिमटी जा रही थी, आखे झुकी हुई थी पर दिखाई दे रहा था कि मजा पूरा ले रही है. उसके होंठ कांप रहे थे. ईतना सुंदर मैंने कभी किसी को देखा नहीं था. मैंने धीरे उसके होठों पर अपने होंठ रख दिए.
उसके होंठ सॉफ्ट और गिले थे सांसों की खुशबू आ रही थी, अंशिका कुछ नहीं बोली, न हिली. मैंने फिर उसका ऊपर का होंठ चूसने शुरू किया, असीम आनंद मिल रहा था.ऐसा लग रहा था कि मैं उड़ रहा हूं, उसका टाइट जिस्म मेरे से चिपका हुआ था और कांप रहा था.
मुझे समझ में आ गया कि गुरु अभी तक रास्ता साफ है, तवा गरम हो रहा है, अब तो पराठा सेकना ही पड़ेगा. बस यही सोच कर मैंने उस के चुतड जोर से भींचे, उस को अपनी तरफ खींचा, मेरा मोटा ठरकी लंड उसकी चूत से टकरा रहा था और रगड रहा था.
साला ऐसा लग रहा था कि इस लोहे को लंड से चिंगारी निकल पड़ेगी. तब मैंने अपनी जबान को उसके मुंह में डाल दीया और उसकी मिठास का पूरा मजा लेने लगा.
यह सिलसिला ५-१० मिनट तक ऐसे ही चला. अब तो हम दोनों भट्टी की तरह जल रहे थे. मैंने एक हाथ उसकी ब्रा में डाल दिया था और उसकी किशमिश को मसलने लगा था. पर मेने जैसे ही दूसरा हाथ उसके उसकी चूत में डाला वह मुझे धक्का देने लगी, लगता है उसकी बर्र में दर्द हो रहा था.
पर मेरी अब तो हालत खराब हो चुकी थी और कोई कंट्रोल नहीं रहा था, मैंने एक दरिंदा बन चुका था, जिसको सिर्फ अंशिका के बदन से अपनी प्यास बुझानी थी. सारे रिश्ते नाते, साथ में खेलना, उसका मुझे राखी बांधना और भैया बुलाना सब में इस आग में भूल चुका था.
मैंने उसको जोर से पकड़ा और नीचे गिरा दिया. अब मैं उसके ऊपर था वह अपने हाथों से मुझे मार रही थी और अपने को बचाने की कोशिश कर रही थी.
मैंने एक हाथ से उसका मुंह दबाया और दूसरे हाथ से उसकी पेंटि निकाल दी, किसी तरह से अपनी पेंट खोली और अपनी जांघो से उसकी जांघे दबा दी. वह छटपटा रही थी पर अब कुछ और नहीं हो सकता था, एक शिकारी अपने जाल में फंसी चिड़िया को कैसे छोड़ सकता है?
मैंने उसकी टांगे चौड़ी कर दी और अपने लंड को उसकी चूत में घुसाने लगा, उसकी चूत सचमुच में टाइट थी, बहुत जोर लगाना पड़ रहा था, और वैसे वो भी गरम हो रही थी और चूत थोड़ा पानी छोड़ने लगी थी.
उसके बाद में पूरा जोर लगा के लंड उसके अंदर घुसा दिया. शायद उसको बहुत दर्द हुआ होगा क्योंकि बहुत तड़प रही थी पर मैं तो अब तो अपने होशोहवस से बाहर हो चुका था.
बस फिर मैंने उसको कब तक चोदा, मुझे भी याद नहीं, बस याद है तो वो हसीन दर्द जो तब तक हर अजीज हरकत से बढ़िया था.
मैं उसके जवान मख्खन जिस्म को तोड़ता मरोडता, हर तरह से उस से खेलता रहा था जब तक मेरे अंदर का ज्वालामुखी फट नहीं गया और मैं उसके बदन पर ढेर नहीं हो गया.
जब होश आया तो वह एक टूटी हुई गुड़िया की तरह पड़ी थी. यह मेरी वासना की देसी कहानी, मैं अपने को कभी माफ नहीं कर पाया पर आग ऐसी लगी की कभी बुजा नहीं पाया.
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