पड़ोसी से नए अंदाज में चुदवाया
हैलो दोस्तो, मेरा नाम ज़हरा खान है और मैं एक स्टूडेंट हूँ.. मैं आन्ध्र प्रदेश में रहती हूँ।
सॉरी.. मैं गोपनीयता के चलते अपने शहर का नाम नहीं बता सकती।
मैं जहाँ रहती हूँ वो एक पॉश कॉलोनी है और हमारे पड़ोस में भी एक ऐसी ही फैमिली रहती थी।
हम लोग भी किसी से किसी भी मायने में कम नहीं थे।
मेरे पड़ोस में एक लड़का रहता था.. उसका नाम दुर्गेश था..
दुर्गेश मेरी ही क्लास में पढ़ता था। हम दोनों का कोर्स एक ही था लेकिन कॉलेज अलग-अलग था।
हमारे घर में लड़कियों के लिए को-एजूकेशन में पढ़ने को ठीक नहीं समझा जाता।
दोस्तो, अब मैं जो बताने जा रही हूँ वो एक अजीब सी कहानी है.. जो मेरी ज़िन्दगी की हकीकत भी है।
यह एक ऐसी सच्चाई है कि जिसे मैं कभी भुला नहीं सकती।
मैं घर से निकलते वक़्त हिजाब पहनती थी जो काफी चुस्त था और उसकी वजह से मेरा जिस्म काफी नुमाया होता था।
दुर्गेश और उसके दोस्त मुझ पर गन्दे-गन्दे कमेंट्स करते थे।
जैसे ‘वाह क्या मस्त गांड है हिजाबन की..’ या ‘एक बार मिल जाए.. तो रात रंगीन हो जाए…’
मैं बड़े गौर से उनके कमेंट्स सुनती थी और मन ही मन खुश होती थी कि यह सब मेरे पीछे कितने दीवाने हैं।
एक बार मेरे अम्मी और अब्बू किसी शादी में बाहर गए तो दुर्गेश के मम्मी-पापा से मेरा ख्याल रखने को कह गए थे.. जिसे उन लोगों ने ख़ुशी से कुबूल भी कर लिया।
उस दिन सन्डे का दिन था मैं घर पर ही थी कि हमारे घर के दरवाजे की घन्टी बजी.. मैंने उठ कर दरवाज़ा खोला तो देखा सामने दुर्गेश खड़ा था।
मैं तनिक शरमाई.. फिर भी मैंने उसको अन्दर आने कह दिया।
मैं हरे रंग का सलवार-सूट पहने हुई थी।
दुर्गेश को देख कर मैंने जल्दी से सर पर दुपट्टा डाल लिया.. आखिर मैं पर्दा जो करती थी।
मैं काफी घबराई हुई थी लेकिन मुझे दुर्गेश के आने से अन्दर ही अन्दर एक मीठी सी ख़ुशी हो रही थी।
वो जिस खा जाने वाले अंदाज़ से मुझे देखता था.. मुझे अन्दर से एक गुदगुदी सी महसूस होती थी।
‘यूँ ही देखती रहोगी या कुछ बोलोगी भी ज़हरा?’
दुर्गेश ने पूछा तो मैं चौंक गई और कहा- हाँ.. बोलो दुर्गेश कैसे आना हुआ?
उस ने कहा- मम्मी ने भेजा था कि जाओ ज़हरा घर में अकेली है.. देख आओ, उसको किसी चीज़ की ज़रुरत तो नहीं…
मैं मुस्कुराई.. मैं समझ गई थी कि दुर्गेश झूठ बोल रहा है.. मम्मी ने कुछ नहीं कहा.. यह खुद मेरे चक्कर में आया है।
लेकिन मैंने उस पर यह बात ज़ाहिर नहीं होने दी और उसको बैठने को कहकर उसको चाय को पूछा.. तो उस ने मना कर दिया।
फिर हम सोफे पे बैठ गए।
दुर्गेश ने मुझसे पूछा- ज़हरा तुम्हें मुझसे डर लगता है क्या?
मैंने कहा- नहीं तो.. ऐसा तो कुछ भी नहीं है।
तो उसने पूछा- फिर तुम मुझसे बात क्यूँ नहीं करती?
मैंने कहा- ऐसा कुछ नहीं है.. वो कभी ऐसा मौका ही नहीं मिला।
तो उसने मेरे कान में शरारत से फुसफुसा कर कहा- आज तो मिल गया न मौका जान…
उसके जान कहने पर मेरे अन्दर एक झुरझुरी सी दौड़ गई..
लेकिन मैंने बनावटी नखरा दिखाते हुए कहा- हटो दुर्गेश.. यह क्या कह रहे हो।
उसने कहा- अरे तुम इतना डरती क्यूँ हो? अच्छा मुझे बताओ.. तुमने कभी सेक्स किया है या कभी किसी को सेक्स करते देखा है?
तो मैं शर्माते हुए बोली- हटो भी.. ये क्या सब पूछ रहे हो?
दुर्गेश ने मेरी जांघ पर अपना हाथ रख दिया।
मैं कुछ नहीं बोली.. उसकी हिम्मत बढ़ गई तो उसने मेरे कंधे पर भी हाथ रख दिया।
मुझे बड़ा अजीब सा महसूस हो रहा था.. ज़िन्दगी में पहली बार कोई लड़का मुझे छू रहा रहा था।
मैं सुरूर में आ गई और दुर्गेश सलवार के ऊपर से मेरी चूत सहलाने लगा।
मैंने बनावटी मना किया और फिर उसने मुझे गर्दन पर चुम्बन करना चालू कर दिया।
मेरे मुँह से सिसकारी निकल गई- स्स्स्स दुर्गेश आह्ह्ह..
वो बोला- हाँ.. मेरी रानी.. कब से तुम्हें पाने का ख्वाब देख रहा था.. आज तुझे चोद कर अपना सपना पूरा करूंगा।
मैं चुप रही उसने मेरे कपड़े उतारने शुरू कर दिए।
कितना अजीब लग रहा था एक गैर मर्द के सामने मैं नंगी हो रही थी और वो मेरे जिस्म से खेल रहा था।
उसकी आँखों में एक वहशी जानवर की तरह मुस्कराहट थी।
मैं समझ रही थी.. ये सिर्फ मुझसे मज़े लेना चाहता है।
मैं भी तो यही चाहती थी.. सो उसका साथ देने लगी।
फिर दुर्गेश ने मुझको पूरा नंगा कर के अपनी पैन्ट भी उतार दी और फिर जैसे ही उसने अपनी अंडरवियर उतारी.. उसका लंड ‘फक्क’ से उछल कर बाहर आ गया.. या खुदा.. मैं तो देख कर डर ही गई थी।
दुर्गेश का एकदम काला लंड कितना भारी और मोटा-ताज़ा.. लम्बा था…
फिर दुर्गेश के लंड को देख कर मेरी आँखों में एक चमक सी आ गई।
दुर्गेश बोला- ज़हरा.. इसको हाथ में लो और हिलाओ।
मैं उसके लंड को हाथ में पकड़ कर ऊपर-नीचे करने लगी।
फिर दुर्गेश बोला- ज़हरा….
मैंने कहा- हाँ.. दुर्गेश?
‘अब इसको ज़रा मुँह में भी ले कर देख लो जहरा…’
‘नहीं दुर्गेश प्लीज..’
‘प्लीज ज़हरा.. मान जाओ.. एक बार चूस कर तो देखो.. कितना मज़ा आता है..’
मैं मान गई.. मैंने दुर्गेश का मोटा-काला ‘अनकट’ लंड.. अपने मुँह में ले कर चूसना शुरू कर दिया.. दुर्गेश तो झूमने लगा।
मेरे चूसते ही ऐसा लगा मानो.. मैं उसके लंड को चूस कर उसके पूरे जिस्म को कंट्रोल कर रही हूँ।
मैंने उसके लवड़े को हलक के अन्दर तक ले लिया और वो मेरे मुँह में झटके मारने लगा।
फिर कुछ देर तक अपना लंड चुसवाने के बाद दुर्गेश ने मुझे सीधा लिटा दिया और मेरी टाँगें फैला कर अपना मुँह मेरी चूत पर लाया और मेरी चूत चाटनी शुरू कर दी।
यकीन मानिए.. दुर्गेश मुझे अपनी जुबान से चोद रहा था।
मैं तो मानो जन्नत में ही पहुँच गई।
फिर दुर्गेश ने मुझे उल्टा लिटा दिया और मेरे पीछे से देख कर बोला- साली.. क्या मस्त गांड है इसकी….
मुझे लगा कहीं वो पीछे से मेरी गांड में ही न लंड पेल दे.. लेकिन उस हरजाई ने पीछे से भी मेरी चूत में ही लंड डाला और झटके देने लगा।
मुझे तो मानो नशा सा चढ़ गया मैं कुछ बोल ही नहीं पा रही थी.. बस आँखें बंद करके दुर्गेश का मोटा-लम्बा लंड अपनी गहराइयों में जाता महसूस कर रही थी और पीछे से दुर्गेश अजीब-अजीब सा बोल रहा था, जो मुझमे अजीब अहसास जगा रहे थे।
जैसे ‘आह रंडी आज हाथ लगी है आज.. इसको सारा दिन चोदूँगा.. आदि..’
फिर दुर्गेश ने मुझे बिस्तर पर सीधा लिटा दिया और मुझसे कहने लगा- ज़हरा डार्लिंग.. अपनी टाँगें फैलाओ।
मैंने वैसा ही किया.. फिर क्या था दुर्गेश ने अपना लंड सामने से मेरी चूत में डाल दिया और झटके देने लगा।
उफ़ अल्लाह.. क्या जन्नत का एहसास था.. मैं तो मज़े के मारे मानो बेहोश सी हुई जा रही थी.. और दुर्गेश लगातार झटके पे झटके मार रहा था।
मैंने उसको जोर से पकड़ लिया था और मेरे हाथ उसकी पीठ पर थे और मैं उसके छाती पर लगातार चुम्बन कर रही थी।
वो मुझे दीवानों की तरह चोद रहा था.. वो लगातार झटके मार रहा था। उसने मेरे गोरे आम दबा-दबा के लाल कर दिए थे और शायद ही मेरे जिस्म का कोई हिस्सा ऐसा बचा होगा जिस पर उसने चुम्बन न किया हो या जिसको उसने रगड़ा न हो…
मैं इस दौरान दो बार झड़ चुकी थी.. अचानक दुर्गेश ने मुझे जोर से पकड़ लिया और झटकों की रफ्तार कई गुना बढ़ा दी.. मैं समझ गई कि दुर्गेश अब झड़ने वाला है।
उसने मुझसे पूछा- ज़हरा जान.. कहाँ निकालूँ.. बाहर या अन्दर..?
मैंने कहा- नहीं.. अन्दर नहीं.. प्लीज.. मैं पेट से न हो जाऊँ।
तो दुर्गेश ने कहा- ठीक है एक शर्त पर बाहर निकालूँगा.. तुम्हें मेरा वीर्य अपने मुँह में ले कर पीना होगा।
मैंने कहा- छी: गंदे कहीं के…
इस पर वो बोला- तो ठीक है गर्भवती होने के लिए तैयार हो जाओ।
मैं डर गई और कहा- मैं मुँह में लेने को तैयार हूँ।
यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !
उसने तेज़ी से साथ झटके लेते हुए मुझसे बैठ जाने को कहा.. मैं तेज़ी से पूरी ईमानदारी के साथ घुटनों के बल बैठ गई।
फिर क्या था दुर्गेश ने फव्वारा मेरे मुँह पर मार दिया.. जिसको मुझे पीना पड़ा।
मैंने उसका लंड मुँह में ले कर साफ कर दिया।
मुझे उस वक़्त यह सब करना बड़ा बुरा लगा लेकिन बाद में जब उसका ख्याल आया तो बड़ा मज़ा आने लगा..
तब से अब तक मैं कई बार दुर्गेश से चुदवा चुकी हूँ और अक्सर वो मेरे मुँह में ही झड़ता है।
मुझे भी उसका वीर्य मुँह में लेने में बड़ा मज़ा आता है।
अगली कहानी में मैं आपको बताऊँगी कि किस तरह मैंने दुर्गेश के दो और दोस्तों से एक साथ चुदवाया.. जी हाँ महेश और रविंदर ठाकुर ने मेरा गैंग-बैंग किया….
मज़ा आ गया था दोस्तो.. दो लंड एक साथ ले कर..
मेरी अगली कहानी का इंतज़ार करें।